अंतकाल तक...!
(मानव जीवन पर एक कविता )
जीवन पर्यन्त लग जाता हैं, मरणोपरांत बनाने कोजो सीखा हैं उसे सिखाने कोजो देखा हैं वो बताने को
फिर भी कुछ रह जाता हैं, जो मन मस्तिष्क में आता हैंकर न सका जो जीवन भर ,वो तू अंतकाल में ध्याता हैं
शायद इसी सोच में,रे मानव,तेरा जीवन संपूर्ण हो जाता हैं।
पवन शर्मा |
Nice Poem
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