Monday, October 30, 2017

अंतकाल तक...!

अंतकाल तक...! 

(मानव जीवन पर एक कविता )
जीवन पर्यन्त लग जाता हैं, मरणोपरांत बनाने को 
जो सीखा हैं उसे सिखाने को 
जो देखा हैं  वो बताने को 
फिर भी कुछ रह जाता हैं, जो मन मस्तिष्क में आता हैं
कर न सका जो जीवन भर ,वो तू अंतकाल में ध्याता हैं 
शायद इसी सोच में,
रे मानव,
तेरा जीवन संपूर्ण हो जाता हैं। 
पवन शर्मा
पवन शर्मा




                                              




1 comment: