Saturday, January 4, 2020

Sunday, November 3, 2019

वायु देव

वायु देव
#वायुदेव: विश्वपुरुष भगवान विष्णु पुत्र..🌀🌀
वैदिक देवताओं को तीन श्रेणियों में विभक्त किया गया है; पार्थिव, वायवीय एवं आकाशीय । इनमें वायवीय देवों में वायु प्रधान देवता है। इसका एक पर्याय वात भी है। #वायु, वात दोनों ही भौतिक तत्त्व एवं दैवी व्यक्त्तित्व के बोधक हैं किंतु वायु से विशेष कर देवता एवं वात से आँधी का बोध होता है। #ऋग्वेद में केवल एक ही पूर्ण सूक्त वायु की स्तुति में है तथा वात के लिये दो हैं।
वायु का प्रसिद्ध विरुद ‘नियुत्वान्’ है जिससे इसके सदा चलते रहने का बोध होता है । वायु मन्द के सिवा तीन प्रकार का होता है: धूल-पत्ते उड़ाता हुआ, वर्षाकर एवं
वर्षा के साथ चलने वाला झंझावात। तीनों प्रकार वात के हैं जबकि वायु का स्वरूप बड़ा ही कोमल वर्णित है। प्रात:कालीन समीर (वायु) उषा के ऊपर साँस लेकर उसे जगाता है, जैसे प्रेमी अपनी सोयी प्रेयसी को जगाता हो। उषा को जगाने का अर्थ है प्रकाश को निमन्त्रण देना, आकाश तथा पृथ्वी को द्युतिमान करना। इस प्रकार प्रभात होने का कारण वायु है क्योंकि वायु ही उषा को जगाता है।
#इन्द्र एवं वायु का सम्बन्ध बहुत ही समीपी है और इस प्रकार इन्द्र तथा वायु युगल देव का रूप धारण करते हैं। विद्युत एवं वायु वर्षाकालीन गर्जन एवं तूफ़ान में एक साथ होते हैं, इसलिए इन्द्र तथा वायु एक ही रथ में बैठते हैं-दोनों के संयुक्त कार्य का यह पौराणिक व्यक्तिकरण है। सोम की प्रथम घूँट वायु ही ग्रहण करता है। वायु अपने को रहस्यात्मक (अदृश्य) पदार्थ के रूप में प्रस्तुत करता है। इसकी ध्वनि सुनाई पड़ती है किन्तु कोई इसका रूप नहीं देखता। एक बार इन्हें #स्वर्ग तथा #पृथ्वी की सन्तान कहा गया है। वायुदेवता का जन्म विश्वपुरुष भगवान विष्णु से हुआ था। ऋग्वेद में कहा गया है कि विश्वपुरुष की श्वास से वायुदेव उत्पन्न हुए।
वेदों के अनुसार इनका स्वरूप रूप सुंदर और मनोहारी है। वायु देवता की खूबी यह है कि इनके सहस्त्र (हजार) नेत्र हैं। एक अद्भुत प्रकाशमान रथ पर विराजमान होते हैं। इस रथ को हजार अश्वों का एक दल खींचता है। वायु देवता के अंश से उत्पन्न अनेक संतानों का वर्णन ग्रंथों में मिलता है। इनमें #हनुमान#भीमसेन (पांच पांडवों में से एक), #इला इन्हीं की संतान मानी गई हैं। वायु देवता की उपासना का बड़ा महत्व है। इनकी उपासना करने से संतान की प्राप्ति तो होती ही है। साथ ही उपासक को जीवन में यश भी प्राप्त होता है। ऋग्वेद में ऐसा भी कहा गया है कि ये शत्रुओं को भगाते हैं और निर्बलों की रक्षा करते हैं। मत्स्यपुराण में #कृष्णमृग पर सवार प्रतिमा पूजन का उल्लेख भी है। इन्हें वात देव अथवा पवन देव के नाम से भी जाना जाता है। कभी-कभी इन्हें प्राण देव भी कहा जाता है।
वैदिक ॠषि वायु के स्वास्थ्य सम्बन्धी गुणों से सुपरिचित थे। वे जानते थे कि वायु ही जीवन का साधन है तथा स्वास्थ्य के लिए वायु का चलना परमावश्यक है। वात रोगमुक्ति लाता है तथा जीवन शक्ति को बढ़ाता है। उसके घर में अमरत्व का कोष भरा पड़ा है। उपर्युक्त हेतुओं से वायु को विश्व का कारण, मनुष्यों का पिता तथा देवों का श्वास कहा गया है। इन वैदिक कल्पनाओं के आधार पर पुराणों में वायु सम्बन्धी बहुत सी पुराकथाओं की रचना हुई।
संसार में यदि मनुष्य जीवित है, सांस ले रहा है तो वो केवल वायु देव की वजह से है। हवा के कारण ही मनुष्य का जीवन संभव है। इसलिए वायु देव की महत्वता और बढ़ जाती है। वायु देव को विनाश का देवता भी माना जाता है यदि वायु देव चाहें तो एक पल में सृष्टि का विनाश कर सकते हैं। हवा बंद कर देने से मनुष्य, जीव-जंतु, पशु-पक्षी कोई भी सांस नहीं ले पाएगा। वायु देव को वैदिक युग से हिंदू धर्म में त्रिभुज देवताओं में से एक के रूप में सम्मानित किया जाता है।
वेदों में वायु को #अंतरिक्ष का देवता माना गया है। वायु का मतलब हवा, पवन होता है। हालांकि वायु को किसी ने देखा नहीं, लेकिन एहसास तो सभी को होता है। जब हवा चलती है उसे सभी महसूस कर सकते हैं कि कोई हमारे चारों और है। इसलिए ही तो यदि वायु है तो जीवन है, जीवन है तो हम हैं। इन्द्र एवं वायु का सम्बन्ध बहुत ही समीपी है और इस प्रकार इन्द्र तथा वायु युगल देव का रूप धारण करते हैं । विद्युत एवं वायु वर्षाकालीन गर्जन एवं तूफ़ान में एक साथ होते हैं, इसलिए इन्द्र तथा वायु एक ही रथ में बैठते हैं। दोनों संयुक्त रुप से कार्य करते हैं।
वायु देव का जीवन में अत्याधिक महत्व है इनके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अगर वायु न हो तो धरती पर विनाश का तांडव मच जाएगा। सारी चीजें इधर से उधर हो जाएगीं। वायु देव को भगवान हनुमान का पिता भी माना जाता है क्योंकि जब बाल्यावस्था में हनुमान जी ने सूर्य को फल समझ कर खाने की चेष्टा की थी तो इन्द्र देव ने उन पर वज्र से प्रहार कर दिया था जिससे वो मुर्छित होकर धरती पर आ गिरे थे। इस बात से वायुदेव क्रोधित हो उठे थे। वो हनुमान जी को अपने पुत्र के समान समझते थे। इसलिए क्रोध में आकर उन्होंने धरती से सारी हवा ही समेट ली थी जिससे धरती पर हाहाकार मच गया था। सब कुछ समाप्त होने लगा था तब जाकर सभी देवताओं ने वायु देव से हाथ जोड़ प्रार्थना की और हनुमान को ठीक किया था इंद्र ने हनुमान को प्रसन्न होकर वरदान दिया तब कहीं जाकर उनका क्रोध दूर हुआ। ऋग्वेद में इंद्र के साथ ही वायु का उल्लेख एक देवता के रूप में है। वायुदेवता का जन्म विश्वपुरुष से हुआ था। ऋग्वेद में कहा गया है कि विश्वपुरुष की श्वास से वायुदेव उत्पन्न हुए।
वायु देव कथा:: वायु देव को #गंधर्वलोक का राजा भी कहा जाता है। वायु देव पर्वतों के राजा है। वह गति के देवता है। इस बात का उल्लेख हिंदू धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। एक पौराणिक कथा के रूप में, एक बार वायुदेव को नारद मुनि ने पवित्र #सुमेरू पर्वत के शीर्ष को तोड़ने के लिए वायु देव को काफी उत्साहित किया। वायु देव ने बहुत कड़ी मेहनत की ताकि सुमेरु पर्वत को तोड़ सकें लेकिन वो जितना भी प्रयास करते गरुड़ देव अपने पंख फैलाकर पर्वत की रक्षा कर लेते थे। ऐसा करते-करते साल भर बित गया। आखिर कार लंबे संघर्ष के बाद गरुड़ पर्वत की रक्षा करते-करते थक गए और नारद जी के उकसाते रहने के कारण वायु देव ने सुमेरु पर्वत के शिखर को तोड़कर समुद्र में फेंका डाला। सुमेरु पर्वत ने अपना पवित्र और पौराणिक शिखर खो दिया। यही सुमेरु शिखर का पर्वत बाद में ब्रह्मज्ञानी लंकापति #रावण का #श्रीलंका बना।
ऋग्वेद में वायु देव के लिए स्तुति है::
‘नमस्ते वायो, त्वमेव प्रत्यक्ष ब्रहमासि,
त्वामेव प्रत्यक्षं ब्रह्म वदिष्यामि तन्मामवतु।'
वेदों में वायु को अंतरिक्ष का देवता माना गया है। वायु का मतलब हवा (पवन)। हालांकि वायु को किसी ने देखा नहीं, लेकिन एहसास तो सभी को है कि वह हमारे चारों ओर है। सच तो यह है कि वायु है तो जीवन है, हम हैं। इसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अगर वायु न हो तो धरा पर हाहाकार की स्थिति उत्पन्न हो जाए। ऐसा एक बार हो चुका है। हुआ यह था कि देवराज इंद्र ने पवनपुत्र #हनुमान की ठुड्डी पर वज्र से प्रहार कर दिया था। कारण बाल्यावस्था में हनुमान ने सूर्य को फल समझकर मुख में रख लिया था। इस बात से वायुदेव क्रोधित हो उठे। उन्होंने अपना अस्तित्व समेट लिया। तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। आखिरकार इंद्र ने हनुमान को प्रसन्न होकर वरदान दिया तब कहीं जाकर उनका क्रोध दूर हुआ। ऋग्वेद में इंद्र के साथ ही वायु का उल्लेख एक देवता के रूप में है।
वायुदेव मंत्र:: "ऊँ वां वायवे प्रारणधिपतये हरिण वाहनायांकुश हस्ताय सपरिवाराय नम:।।

Friday, March 1, 2019

सावधान रहिये ऐसे रिश्तो से जो .......

सावधान रहिये ऐसे रिश्तो से जो .......
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कुछ लोग रिश्तो में ऐसे भी होते है जो जटिलता और कुटिलता दोनों के धनी होते है 
सावधान रहिये ऐसे रिश्तो से जो अपनों से ज्यादा परयो को समझते है 
कुछ नहीं हो रहा ........!
अब सोच बदल के देखो 

कसम से अपने दिल पर हाथ रखकर एक सवाल करना हम दुनिया में क्या कर रहे हैं सोच अपने आप बदल जाएगी

Saturday, August 25, 2018

जान की कीमत जान से (दुःखी बिल्ली का वृतांत)

जान की कीमत जान से (दुःखी बिल्ली का वृतांत)

जान की कीमत जान से, ये बात आज फिर साबित हुई 
जन्म देने वाली भी मृत्यु में भागी हुई 

किये थे जिसने ब्यभिचार दहसत का अत्याचार 
डूबी है आज व्याकुल दुःख में लगा रही करुणामयी पुकार 

सर्वस्व न्योछावर करके भी जो बचा सकी नहीं कुछभी 
कंठ से करुणा पुकार वो लगा रही फिर भी 

बिड़ाल इस घटना को किंचित मात्र तेरे जीवन का अभिशाप समझ 
किये गए पापो का इसको विराट पश्चाताप समझ
४ प्रहर के पश्चात आती है वो रात समझ 

जान गवां के अपनों की जो जान की कीमत जानी है 
ये तो मात्र एक छोटी सी कुदरत की मनमानी हैं 

पवन शर्मा (विचारक)

Thursday, May 31, 2018

उचित समय आने पर अच्छाई द्वारा बुराई के लिए किया गया अच्छा कार्य ही बुराई के विनाश का कारण बनता हैं।

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उचित समय आने पर अच्छाई द्वारा बुराई के लिए किया गया अच्छा कार्य ही बुराई के विनाश का कारण बनता हैं। 

When good time comes, good work done for good by evil only causes the destruction of evil.


साधु और राक्षस

प्राचीन काल में शौर्य वन में, एक बड़े ही सिद्ध साधु निवास करते थे। वे अपने आदर्श जीवन और मानवता के लिए काफी प्रसिद्ध थे।


Wednesday, May 23, 2018